रांची न्यूज डेस्क: सोनाहातू प्रखंड के तेतला पंचायत में रहने वाले आदिवासी दंपती सुखदेव पातर मुंडा और उनकी पत्नी मीना देवी की जिंदगी इन दिनों बेहद दहशत में गुजर रही है। वर्षा के कारण उनका मिट्टी का मकान ढह गया और अब वे प्लास्टिक की झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं। यह झोपड़ी इतनी कमजोर है कि एक हल्की हवा में फड़फड़ाने लगती है और हाथियों के आतंक वाले इस इलाके में रातें डर और चिंता में कट रही हैं।
सुखदेव बीमार हैं और अपनी परेशानी को सिस्टम तक पहुंचाने की ताकत नहीं रखते। उनका घर चार माह पहले बेटी के ससुराल में रहने के बाद टूट गया और लौटने पर उन्हें बस प्लास्टिक की पतली दीवारों वाला आशियाना ही मिल सका। मीना देवी ने बताया कि उनका बेटा अलग रहता है और उन्होंने माता-पिता की कोई मदद नहीं की। झोपड़ी में न दरवाजा है, न सुरक्षा, न ही कोई प्रशासनिक मदद मिली। तेज हवा चलने पर प्लास्टिक की तिरपाल फड़फड़ाती है और पड़ोसी भी लगातार चिंतित हैं।
पड़ोसी सुधीर पातर मुंडा ने प्रशासन पर सवाल उठाए और बताया कि आदिवासी होने के बावजूद बुजुर्ग दंपती के लिए कोई सरकारी सहायता नहीं मिल रही है। उन्होंने कहा कि दो-दो बार घर के लिए आवेदन देने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। राज्य सरकार और प्रधानमंत्री आवास योजना के दावों के बावजूद सुखदेव दंपती सुरक्षित आवास से वंचित हैं।
बुंडू एसडीएम किस्टो कुमार बेसरा ने मामले की जानकारी ली और आश्वासन दिया कि संबंधित सीओ और बीडीओ को पत्राचार कर इस जरूरतमंद परिवार के लिए सरकारी आवास की प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाया जाएगा। प्रशासन ने सकारात्मक पहल का भरोसा दिलाया है, लेकिन सवाल यह है कि मकान बनने से पहले इस दंपती की सुरक्षा की क्या व्यवस्था की गई है।