भारतीय महाकाव्य महाभारत में असंख्य पात्र हैं, लेकिन उनमें द्रौपदी का चरित्र सबसे प्रमुख, सशक्त और रहस्यमय है। द्रौपदी का जीवन संघर्ष, सम्मान और दैवीय हस्तक्षेप का अद्भुत मिश्रण है। वह केवल पाँच पांडवों की पत्नी नहीं थीं, बल्कि पूरे कुरुक्षेत्र युद्ध की एक केन्द्रीय धुरी थीं। उनके जीवन से जुड़ी ऐसी कई रोचक और कम ज्ञात कथाएं हैं जो उनके व्यक्तित्व की जटिलता को दर्शाती हैं, जैसे उनका पूर्वजन्म क्या था, उन्हें यज्ञ से जन्म क्यों मिला और वह अंततः स्वर्ग क्यों नहीं जा पाईं। आइए जानते हैं महाभारत की इस वीरांगना से जुड़े कुछ सबसे रोचक और अनसुने तथ्य।
द्रौपदी के पूर्वजन्म का रहस्य: पंच पतियों का वरदान
महाभारत में द्रौपदी के पूर्वजन्म की कथा का उल्लेख मिलता है, जिसे स्वयं महर्षि वेदव्यास ने पांडवों को सुनाया था।
कौन थीं द्रौपदी? पूर्वजन्म में द्रौपदी एक ब्राह्मण कन्या थीं। वह सभी गुणों से संपन्न थीं, लेकिन भाग्यवश उनका विवाह नहीं हो पा रहा था।
घोर तपस्या: अविवाहित रहने के दुख से व्याकुल होकर, उन्होंने देवों के देव महादेव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की।
पाँच पतियों का वरदान: जब महादेव उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुए, तो ब्राह्मण कन्या ने उनसे पाँच बार 'भरतवंशी पति' का वरदान मांगा। अत्यंत कठिन तपस्या के कारण महादेव ने उन्हें यह वरदान दे दिया।
परिणाम: इसी वरदान के कारण, अगले जन्म में, वह राजा द्रुपद की पुत्री द्रौपदी के रूप में जन्मीं और उनका विवाह पाँच भरतवंशियों यानी पाँच पांडवों से हुआ। यह कथा उनकी असाधारण नियति को समझाती है।
अग्नि की वेदी से जन्म: यज्ञसेनी से कृष्णा तक
द्रौपदी का जन्म एक सामान्य मानव की तरह माँ के गर्भ से नहीं हुआ था, बल्कि एक दैवीय घटना का परिणाम था। द्रौपदी का जन्म राजा द्रुपद के एक यज्ञ की अग्नि वेदी से हुआ था। राजा द्रुपद ने द्रोणाचार्य से प्रतिशोध लेने के लिए पुत्र और पुत्री की कामना से यह यज्ञ किया था। यज्ञ से उत्पन्न होने के कारण ही उन्हें 'यज्ञसेनी' कहा गया। राजा द्रुपद की पुत्री होने के कारण वह 'द्रौपदी' कहलाईं, और पंचाल देश की राजकुमारी होने से उनका नाम 'पांचाली' पड़ा। उनका एक नाम 'कृष्णा' भी था, जो उनके गहरे रंग या भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय सखी होने के कारण प्रचलित हुआ। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, द्रौपदी देवराज इंद्र की पत्नी शचि की अंशावतार भी थीं, जिससे उनके व्यक्तित्व में असाधारण तेज और शक्ति थी।
अपमान का प्रतिशोध: दुःशासन के रक्त से धोए केश
महाभारत के सबसे दुखद और निर्णायक मोड़, हस्तिनापुर के जुए के दौरान, द्रौपदी का अपमान हुआ था।
वस्त्र हरण की प्रतिज्ञा: जब जुए में पांडव द्रौपदी सहित अपना सब कुछ हार गए, तो दुर्योधन के आदेश पर दुःशासन ने भरी सभा में द्रौपदी का वस्त्र हरण करने का प्रयास किया। हालांकि, भगवान श्रीकृष्ण के चमत्कार से दुःशासन अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाया।
भीम की भीषण प्रतिज्ञा: इस घोर अपमान के बाद, क्रोधित भीम ने प्रतिज्ञा ली थी कि जब तक वह दुःशासन की छाती चीरकर उसके खून से द्रौपदी के खुले बाल नहीं धोएँगे, तब तक द्रौपदी अपने बाल नहीं बाँधेंगी।
प्रतिज्ञा पूरी: कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान, भीम ने दुःशासन का वध किया और अपनी भीषण प्रतिज्ञा पूरी करके द्रौपदी के अपमान का प्रतिशोध लिया। इस प्रतिज्ञा ने द्रौपदी के अपमान को युद्ध के सबसे बड़े कारणों में से एक बना दिया।
स्वर्ग यात्रा और मृत्यु का कारण
महाभारत की कथा के अंत में, जब पांडव अपना राज-पाट छोड़कर स्वर्ग की यात्रा पर निकले, तो द्रौपदी भी उनके साथ थीं। लेकिन स्वर्ग की यात्रा के दौरान वह बीच में ही गिर गईं और उनकी मृत्यु हो गई।
भीम का प्रश्न: द्रौपदी के अचानक गिरने और मृत्यु होने पर, भीम ने धर्मराज युधिष्ठिर से इसका कारण पूछा, क्योंकि द्रौपदी ने हमेशा धर्म का पालन किया था।
युधिष्ठिर का उत्तर: धर्मराज युधिष्ठिर ने कारण बताते हुए कहा, "द्रौपदी हम पाँचों की पत्नी थी, लेकिन वह अर्जुन को अधिक प्रेम करती थी। वह हम सब में समान भाव नहीं रखती थी। इसी 'पक्षपात के पाप' के कारण उसकी मृत्यु हुई है।"
यह घटना दर्शाती है कि स्वर्ग का मार्ग कितना कठिन और त्रुटिहीन होता है, जहां एक छोटे से भावनात्मक पक्षपात का भी हिसाब होता है। द्रौपदी का जीवन, इसलिए, शक्ति, नियति और मानव संबंधों की जटिलताओं की एक अमर गाथा है।