रांची न्यूज डेस्क: तीन दिवसीय ‘धरती आबा जनजातीय फिल्म फेस्टिवल-2025’ का मंगलवार को भव्य आगाज हुआ। यह आयोजन डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान (टीआरआई) में हुआ, जिसमें देश के कई नामी फिल्मकार शामिल हुए। आदिवासी जीवन और संस्कृति पर केंद्रित फिल्मों के प्रदर्शन ने युवाओं और स्टूडेंट्स का खासा ध्यान आकर्षित किया। टीआरआई के दो थिएटर में फिल्में दिखाई जा रही हैं और फिल्म मेकिंग में करियर बनाने वाले छात्रों की भारी भीड़ जमा है। कल्याण मंत्री चमरा लिंडा ने उद्घाटन करते हुए कहा कि यह महोत्सव केवल फिल्मों का नहीं, बल्कि आदिवासी पहचान, परंपरा और जीवन दर्शन का उत्सव है।
फेस्टिवल में 15 राज्यों की 52 फिल्में प्रदर्शित की जा रही हैं। पहले दिन 19 फिल्मों का प्रदर्शन हुआ, जिनमें ‘फूलो’, ‘आदिवासी’, ‘सोइल अलाइन टू अर्थ’, ‘रूट्स टू द यूनिवर्स’, ‘ब्रेकिंग बेरियर्स’, ‘बांधा खेत’, ‘कुसुम’, ‘ह्यूमन इन द लुप’, ‘फायर ऑन द एज’, ‘हीरा लो होनोर’ और ‘याकासिस सिस्टर’ शामिल थीं। फिल्म ‘डिस्को दीवाने’ का निर्देशन श्रीधर सुधीर ने किया, जिसमें झारखंड के गीत, खदान और स्थानीय जीवन पर कहानी बनाई गई। दर्शकों ने झकमक दिसि ला रे रांची सहरिया और कहेला जिंदगी छू ले तो गेले बेटा जैसे गीतों का भी भरपूर आनंद लिया।
कल्याण मंत्री चमरा लिंडा ने कहा कि फिल्मों का दायित्व केवल मनोरंजन नहीं बल्कि समाज की सच्चाई को उजागर करना है। जब किसी जनजातीय जीवन पर फिल्म बनाई जाए, तो उसका कथानक यथार्थ पर आधारित होना चाहिए। इस पहल से आदिवासी कलाकारों और युवाओं को अपनी अभिव्यक्ति का मंच मिलेगा और वे अपनी वास्तविक कहानियों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत कर सकेंगे। इस फेस्टिवल में बिरसा मुंडा और शिबू सोरेन पर भी फिल्में शामिल हैं।
कल बेंगलुरु की फिल्ममेकर स्नेहा मुंडारी की फिल्म ‘सेनगे सुसुन काजी गे दुरंग’ का प्रदर्शन होगा। उन्होंने कहा कि झारखंड में ऐसे फेस्टिवल होने चाहिए ताकि लोग अपने समुदाय, संस्कृति और रीजन को जान सकें। तीन साल पहले आयोजित टीआरआई कार्यशाला में फिल्म फेस्टिवल की बात उठी थी, और अब देशभर की 50 से अधिक फिल्में प्रदर्शित की जा रही हैं। छात्रों ने आज फिल्में देखीं और भविष्य में यही छात्र फिल्में बनाने में सक्रिय होंगे।