देश के सर्वोच्च न्यायालय ने पोर्नोग्राफी पर व्यापक प्रतिबंध लगाने की मांग वाली एक जनहित याचिका पर तत्काल सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। सुनवाई के दौरान, निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि इस तरह के प्रतिबंध के सामाजिक परिणामों पर विचार करना चाहिए और नेपाल में हाल ही में हुए 'जेनरेशन ज़ेड' के विरोध प्रदर्शनों से इसकी तुलना की। कोर्ट ने हालांकि याचिका को पूरी तरह खारिज नहीं किया, लेकिन इस पर चार हफ्ते बाद सुनवाई करने का फैसला लिया। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई 23 नवंबर को पदमुक्त होने वाले हैं, जिसका अर्थ है कि इस संवेदनशील मुद्दे की अगली सुनवाई नई पीठ के समक्ष होगी।
याचिकाकर्ता की मुख्य मांगें
याचिकाकर्ता ने केंद्र सरकार को निम्नलिखित निर्देशों के लिए एक राष्ट्रीय नीति और कार्ययोजना तैयार करने की मांग की थी:
पोर्नोग्राफी देखने पर अंकुश लगाने के लिए प्रभावी कदम उठाना।
सार्वजनिक स्थानों पर ऐसी किसी भी सामग्री को देखने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना।
विशेष रूप से उन लोगों के लिए प्रतिबंध लगाना जो अभी वयस्क नहीं हुए हैं (नाबालिग)।
याचिकाकर्ता ने यह तर्क दिया कि डिजिटलीकरण के इस युग में, साक्षर या निरक्षर होने से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि सब कुछ 'एक क्लिक' में उपलब्ध है।
डिजिटल उपकरणों और कोविड का प्रभाव
याचिकाकर्ता ने अपने तर्क को मजबूत करते हुए कोविड महामारी के दौरान की स्थिति का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि कोविड के दौरान स्कूली बच्चों ने बड़े पैमाने पर डिजिटल उपकरणों का उपयोग किया, लेकिन इन उपकरणों में पोर्नोग्राफी देखने पर रोक लगाने की कोई प्रभावी व्यवस्था नहीं है। याचिकाकर्ता ने इस बात पर जोर दिया कि सरकार ने स्वयं स्वीकार किया है कि इंटरनेट पर अश्लील सामग्री को बढ़ावा देने वाली अरबों साइटें उपलब्ध हैं, जिससे बच्चों और युवाओं का इन सामग्रियों तक पहुंचना आसान हो गया है।
'प्रभावी कानून' और युवा सुरक्षा की मांग
याचिका में तर्क दिया गया कि वर्तमान में देश में इस समस्या से निपटने के लिए कोई प्रभावी कानून मौजूद नहीं है। याचिकाकर्ता ने कहा कि पोर्नोग्राफी देखने से न केवल व्यक्तियों पर, बल्कि समाज, विशेष रूप से 13 से 18 वर्ष की आयु के युवाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। याचिका में मांग की गई कि सरकार ऐसे कानूनों को अनिवार्य करे जो वर्तमान में उपलब्ध सॉफ्टवेयर का उपयोग करके माता-पिता या अभिभावकों को बच्चों द्वारा देखी जाने वाली सामग्री को प्रतिबंधित करने या उन्हें वास्तविक समय में यह ट्रैक करने की अनुमति दें कि उनके बच्चे क्या ब्राउज कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट की तुलनात्मक टिप्पणी
याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की खंडपीठ ने सीधे-सीधे पोर्नोग्राफी पर प्रतिबंध लगाने के निहितार्थों को उठाया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा, "देखिए, नेपाल में प्रतिबंध को लेकर क्या हुआ।" यह टिप्पणी संभवतः सितंबर में नेपाल में हुए उन बड़े विरोध प्रदर्शनों की ओर इशारा कर रही थी, जिन्हें 'जेनरेशन ज़ेड' विरोध प्रदर्शन कहा गया था। ये विरोध प्रदर्शन सरकार द्वारा लगाए गए कुछ ऑनलाइन प्रतिबंधों, जिनमें इंटरनेट सामग्री पर नियंत्रण शामिल था, के विरोध में किए गए थे। कोर्ट का संकेत स्पष्ट था कि प्रतिबंध लागू करने से पहले अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक विद्रोह जैसी जटिलताओं पर विचार करना होगा।
न्यायालय ने मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए फिलहाल कोई अंतरिम आदेश जारी नहीं किया है और चार सप्ताह बाद इस पर विस्तृत सुनवाई करने का निर्णय लिया है। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी ने एक बार फिर डिजिटल सामग्री पर नियंत्रण बनाम स्वतंत्रता की बहस को हवा दे दी है।