मुंबई, 03 नवम्बर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर डिवीजन बेंच ने शिक्षक भर्ती से जुड़े एक मामले में अहम फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि किसी भी उम्मीदवार की पात्रता केवल उसके आवेदन पत्र में दी गई जानकारी के आधार पर ही तय की जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि भर्ती प्रक्रिया समाप्त होने के बाद उम्मीदवार किसी वैकल्पिक योग्यता का दावा नहीं कर सकता। जस्टिस डॉ. पुष्पेंद्र सिंह भाटी और जस्टिस बिपिन गुप्ता की खंडपीठ ने राज्य सरकार की अपील स्वीकार करते हुए 23 फरवरी 2021 के एकलपीठ के आदेश और नरेशचंद्र पटेल की रिट याचिका को खारिज कर दिया।
यह मामला बांसवाड़ा जिले में शिक्षक ग्रेड-III लेवल-I की भर्ती से जुड़ा है। नरेशचंद्र पटेल ने इस भर्ती में आवेदन किया था। उन्होंने REET परीक्षा में 64.67 प्रतिशत अंक प्राप्त किए थे, जो सामान्य वर्ग के लिए निर्धारित 60 प्रतिशत कट-ऑफ से अधिक थे। इसके बावजूद उन्हें नियुक्ति नहीं मिली। कारण यह था कि उन्होंने आवेदन पत्र में अपनी पात्रता सीनियर सेकेंडरी, REET और प्रारंभिक शिक्षा में द्विवर्षीय डिप्लोमा के आधार पर बताई थी। लेकिन सीनियर सेकेंडरी में उनके केवल 44.15 प्रतिशत अंक थे, जबकि न्यूनतम योग्यता 45 प्रतिशत निर्धारित थी।
पटेल ने पहले हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी कि REET में अच्छे अंक पाने के बावजूद सीनियर सेकेंडरी के अंकों के आधार पर उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया जाना चाहिए। यह याचिका करीब ढाई साल तक लंबित रही और बाद में उन्होंने इसे वापस लेकर नई याचिका दायर की। नई याचिका में उन्होंने पहली बार कहा कि उन्होंने अपने आवेदन में ग्रेजुएशन की डिग्री का उल्लेख अनजाने में छोड़ दिया था और उनकी पात्रता अब ग्रेजुएशन के आधार पर देखी जानी चाहिए। साथ ही उन्होंने OBC वर्ग से होने के कारण 5 प्रतिशत की छूट देने की मांग भी की।
एकलपीठ ने पटेल के पक्ष में फैसला देते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि उसकी पात्रता ग्रेजुएशन मार्कशीट के आधार पर जांची जाए और अगर वह योग्य पाया जाए तो उसे नियुक्त किया जाए। इसके खिलाफ राज्य सरकार ने अपील दायर की। सरकार ने दलील दी कि उम्मीदवार ने न तो आवेदन पत्र में और न ही अपनी पहली याचिका में ग्रेजुएशन का कोई उल्लेख किया था। जबकि विज्ञापन में स्पष्ट लिखा था कि ग्रेजुएशन डिग्री और द्विवर्षीय डिप्लोमा एक वैकल्पिक पात्रता मापदंड हैं।
सरकार की ओर से यह भी कहा गया कि उम्मीदवार ने 2018 में आवेदन करते समय जो जानकारी दी, उसके आधार पर उसकी पात्रता की जांच की गई और उसे सही रूप में अयोग्य घोषित किया गया। ढाई साल बाद पहली बार ग्रेजुएशन का दावा करना दस्तावेजों की प्रामाणिकता पर सवाल खड़ा करता है। वहीं, उम्मीदवार के वकील ने तर्क दिया कि यह एक सद्भावनापूर्ण गलती थी और चूंकि पद खाली हैं, इसलिए अदालत को राहत देनी चाहिए।
डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा कि ढाई साल बाद किसी उम्मीदवार को यह कहने की अनुमति नहीं दी जा सकती कि आवेदन पत्र में योग्यता का उल्लेख न करना मात्र एक गलती थी। ऐसी अनुमति देना भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता को प्रभावित करेगा। अदालत ने यह भी कहा कि विज्ञापन के अनुसार उम्मीदवार को आवेदन करने से पहले अपनी पात्रता सुनिश्चित करनी होती है। कोर्ट ने यह सिद्धांत दोहराया कि किसी भी भर्ती प्रक्रिया में पात्रता केवल उसी जानकारी पर आधारित होगी जो उम्मीदवार आवेदन के समय प्रस्तुत करता है। प्रक्रिया पूरी होने के बाद किसी नए दस्तावेज या योग्यता को जोड़ने का दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता।