देश की शीर्ष न्यायपालिका पर की गई टिप्पणियों को लेकर बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ विवादों में घिरते नजर आ रहे हैं। दोनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के तहत कार्रवाई की मांग की गई है। यह मामला तब और गंभीर हो गया जब वरिष्ठ अधिवक्ताओं और कानूनी विशेषज्ञों ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी को पत्र लिखकर अनुमति की अपील की।
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ उठी मांग
सुप्रीम कोर्ट के वकील अनस तनवीर ने बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे के हालिया बयान को सुप्रीम कोर्ट की गरिमा के खिलाफ बताते हुए अवमानना की कार्रवाई की मांग की है। उनके बाद वकील शिवकुमार त्रिपाठी ने भी इसी मामले में अटॉर्नी जनरल को अर्जी दी है। दोनों वकीलों का मानना है कि दुबे का बयान न्यायपालिका की साख और स्वायत्तता पर हमला है, जो अदालत की अवमानना के अंतर्गत आता है।
अब उपराष्ट्रपति भी विवादों के घेरे में
केरल के वकील सुभाष थीक्कदन ने देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ भी अवमानना की कार्रवाई की मांग करते हुए अटॉर्नी जनरल को पत्र लिखा है। मामला तब गरमाया जब उपराष्ट्रपति ने वक्फ अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई को लेकर टिप्पणी करते हुए कहा:
"हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां सुप्रीम कोर्ट भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दे। संविधान में न्यायपालिका का अधिकार केवल अनुच्छेद 145(3) तक सीमित है। अनुच्छेद 142 अब लोकतंत्र के खिलाफ एक न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है।"
धनखड़ ने न्यायपालिका पर उठाए सवाल
उपराष्ट्रपति ने अपने बयान में कहा कि न्यायपालिका की पारदर्शिता पर सवाल उठ रहे हैं और लोगों का विश्वास न्याय प्रणाली से हट रहा है। उन्होंने एक घटना का हवाला भी दिया जिसमें एक न्यायमूर्ति के घर से नकदी मिलने के बावजूद कोई कार्रवाई न होने की बात कही। यह बयान कई कानूनी विशेषज्ञों और वकीलों को नागवार गुजरा, जिन्होंने इसे संवैधानिक मर्यादा के विरुद्ध बताया।
क्या है अनुच्छेद 142?
अनुच्छेद 142 भारतीय संविधान का एक ऐसा विशेष प्रावधान है जो सुप्रीम कोर्ट को किसी भी मामले में "पूर्ण न्याय" सुनिश्चित करने के लिए आदेश या निर्णय पारित करने का अधिकार देता है। इसके तहत अदालत ने कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं, जैसे कि तलाक के मामलों में राहत, विवादित संपत्ति के निर्णय, और राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर फैसला।
आगे क्या?
अब सभी की नजरें इस पर टिकी हैं कि अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी इस पर क्या रुख अपनाते हैं। अगर वे सहमति देते हैं, तो यह देश में पहली बार होगा जब एक उपराष्ट्रपति और सत्ताधारी पार्टी के सांसद के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना की कार्यवाही शुरू हो सकती है।
यह मामला न सिर्फ संवैधानिक अधिकारों की सीमाओं को उजागर करता है, बल्कि लोकतंत्र के तीनों स्तंभों — विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका — के बीच सीमाओं और संतुलन को लेकर एक नई बहस भी छेड़ सकता है।