मुंबई हमले के मुख्य साजिशकर्ता और पाकिस्तानी मूल के आतंकी तहव्वुर हुसैन राणा को भारत लाने की राह अब पूरी तरह साफ हो चुकी है। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने राणा की वह याचिका खारिज कर दी है जिसमें उसने भारत प्रत्यर्पण पर रोक लगाने की मांग की थी। इस ऐतिहासिक फैसले के बाद अब भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत मानी जा रही है।
राणा ने अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट में 'बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के लंबित मुकदमे पर रोक' की मांग करते हुए आपातकालीन आवेदन दाखिल किया था, जिसे शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया। इसके साथ ही अब राणा को भारत प्रत्यर्पित किए जाने की प्रक्रिया जल्द शुरू हो सकती है।
क्यों था यह मामला इतना अहम?
26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए भीषण आतंकवादी हमले में 166 लोग मारे गए थे, जिनमें कई विदेशी नागरिक भी शामिल थे। इस हमले को अंजाम देने वाले पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैय्यबा से जुड़े थे। इस पूरी साजिश में डेविड हेडली और तहव्वुर राणा की भूमिका प्रमुख रही। भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने राणा को इस हमले का सह-साजिशकर्ता माना और 2011 में उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी।
अब जब अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने भारत प्रत्यर्पण पर रोक की याचिका खारिज कर दी है, तो यह भारतीय जांच एजेंसियों के लिए एक बड़ी कामयाबी मानी जा रही है। इससे पहले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी राणा के प्रत्यर्पण की घोषणा कर चुके हैं।
कैसे खारिज हुई राणा की याचिका?
64 वर्षीय तहव्वुर राणा फिलहाल लॉस एंजिल्स के मेट्रोपॉलिटन डिटेंशन सेंटर में बंद है। राणा ने 27 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश एलेना कागन के समक्ष याचिका दायर की थी, जिसमें उसने अनुरोध किया कि उसके ‘बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के लंबित मुकदमे पर रोक लगाई जाए।’
हालांकि, पिछले महीने की शुरुआत में न्यायाधीश कागन ने उसका आवेदन खारिज कर दिया था। इसके बाद राणा ने इसे रिन्यू करते हुए मांग की कि इस आवेदन को मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स को भेजा जाए।
सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर 4 अप्रैल को राणा का आवेदन सूचीबद्ध किया गया था और अब वेबसाइट पर पोस्ट नोटिस में कहा गया है,
"कोर्ट ने आवेदन खारिज कर दिया है।"
इस फैसले के साथ ही भारत प्रत्यर्पण का रास्ता लगभग साफ हो गया है।
डोनाल्ड ट्रंप की बड़ी घोषणा
यह फैसला ऐसे समय में आया है जब हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका दौरे पर गए थे। दौरे के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने साफ तौर पर कहा था,
“मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि मेरे प्रशासन ने 2008 के मुंबई हमले के साजिशकर्ताओं में से एक तहव्वुर राणा को भारत में न्याय का सामना करने के लिए प्रत्यर्पित करने की मंजूरी दे दी है।”
ट्रंप ने राणा को ‘बेहद खतरनाक व्यक्ति’ बताया था और कहा था कि अमेरिका और भारत मिलकर कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ लड़ेंगे।
कौन है तहव्वुर राणा?
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नाम: तहव्वुर हुसैन राणा
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उम्र: 64 वर्ष
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नागरिकता: पाकिस्तानी मूल का कनाडाई नागरिक, पहले अमेरिका का भी निवासी
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पेशेवर पृष्ठभूमि: पूर्व सैन्य डॉक्टर (पाकिस्तानी सेना), बाद में शिकागो में इमीग्रेशन व ट्रैवल एजेंसी का मालिक
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आतंकी कनेक्शन: लश्कर-ए-तैय्यबा और डेविड हेडली का करीबी सहयोगी
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भूमिका: 26/11 मुंबई हमलों की योजना में सक्रिय भूमिका, आतंकी समूहों को सहायता और संसाधन उपलब्ध कराना
राणा ने पाकिस्तानी सेना में करीब 10 वर्षों तक डॉक्टर के रूप में सेवा दी थी। मेडिकल डिग्री के बाद वह सेना की मेडिकल कोर में शामिल हुआ था। उसकी पत्नी भी डॉक्टर है।
1997 में वह कनाडा चले गए और 2001 में वहां की नागरिकता ली। बाद में अमेरिका के शिकागो में एक व्यवसायिक एजेंसी खोली, जिसके माध्यम से डेविड हेडली को भारत भेजने की योजना बनाई गई।
राणा और हेडली की जोड़ी: मुंबई हमले की रीढ़
डेविड हेडली ने अमेरिकी जांच एजेंसियों के सामने कबूल किया था कि वह लश्कर के निर्देश पर भारत में रेकी करने गया था। उसने मुंबई में ताज होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट, नरीमन हाउस समेत कई प्रमुख स्थानों की जासूसी की थी। हेडली ने यह भी स्वीकार किया था कि राणा ने उसे इस काम के लिए कवरेज और मदद दी थी।
राणा ने अपने ट्रैवल बिजनेस का इस्तेमाल करते हुए हेडली को भारत भेजने की व्यवस्था की। जांच में सामने आया कि दोनों ने मिलकर साजिश रची और लॉजिस्टिक सपोर्ट प्रदान किया।
भारत की कानूनी तैयारी
भारत सरकार ने लंबे समय से तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण की मांग की थी। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने अमेरिका को साक्ष्य सौंपे थे और कानूनी दलीलें दी थीं कि राणा ने भारतीय नागरिकों की हत्या की साजिश में हिस्सा लिया, इसलिए उसका प्रत्यर्पण न्यायसंगत और आवश्यक है।
अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिका खारिज किए जाने के बाद यह माना जा रहा है कि राणा को भारत लाने की प्रक्रिया तेज हो जाएगी।
कूटनीतिक और न्यायिक जीत
यह फैसला भारत के लिए एक कूटनीतिक जीत है, खासकर ऐसे समय में जब वैश्विक आतंकवाद पर संयुक्त रूप से कार्रवाई की मांग बढ़ रही है। प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका दौरे और ट्रंप से मुलाकात के बाद से ही यह अनुमान लगाया जा रहा था कि अमेरिका राणा के प्रत्यर्पण पर सहमति जताएगा।
अब जब यह कानूनी बाधा भी हट चुकी है, तो भारत को न केवल न्याय की दिशा में सफलता मिली है, बल्कि एक खतरनाक आतंकी को सजा दिलाने की राह भी प्रशस्त हुई है।
निष्कर्ष: अब जल्द ही भारत की धरती पर होगा राणा का ट्रायल
तहव्वुर राणा को भारत लाना अब औपचारिकता भर रह गया है। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अमेरिका सरकार जल्द ही उसके प्रत्यर्पण की प्रक्रिया पूरी कर सकती है। एक बार राणा भारत पहुंचता है, तो मुंबई हमलों से जुड़े सबसे बड़े गुनहगारों में से एक को भारतीय न्याय प्रणाली के सामने लाया जा सकेगा।
यह फैसला उन 166 निर्दोष लोगों के लिए एक प्रतीकात्मक न्याय है, जिन्होंने 26/11 की रात अपने प्राण गंवाए थे। और यह संदेश भी कि भारत अपने नागरिकों के खिलाफ आतंक फैलाने वालों को कभी नहीं भूलेगा और न छोड़ेगा।